ज़िन्दगी की इस दौड़ में
ये अनजानी सी मंद्चाल है क्यों ?
खयालों की इस भीड़ में,
ये सोच दूर तक सूनी है क्यों ?
सफलता के दौर के इस कोलाहल में ,
इन कानो में असफलता का सन्नाटा है क्यूं ?
तेज़ चिलचिलाती धुप के पसीने में,
ये अजब सी ठंडक है क्यों\?
दूषित हवा के इस वतावारारण में,
आई सूकुने ज़िन्दगी की लहर कहाँ से और क्यों ?
मीलों तक कतम न होने वाले इस रेगिस्तान में,
ये पानी में परछाई का धोका है क्यों ?
इन सभी प्रशनों के उत्तर में,
ये जुबां निरंतर निरुत्तर है क्यों ?