Friday, July 9, 2010


सागरके तट से दूर क्षितिज तक अनगिनत थिरकती लहरें हैं,

लहरों के भीतर उस सागर के अरमान बड़े ही गहरे हैं।

तट पर न जाने कितनी प्रतिभाओं के अति रम्य महल और चेहरे हैं,

सागर की उफनती फोज के लिए उन महलों में न कोई पहरे हैं।

ज़िन्दगी की इस आजमयिश में, न जाने हम आगे बढ़कर क्यूँ ठहरे हैं,

क्या भय है सागर की लहरों का जिनके लिए न कोई पहरे हैं।

सागर के तट से दूर क्षितिज तक अनगिनत थिरकती लहरें हैं,

लहरों के भीतर उस सागर के अरमान बड़े ही गहरे हैं।


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