सागरके तट से दूर क्षितिज तक अनगिनत थिरकती लहरें हैं,
लहरों के भीतर उस सागर के अरमान बड़े ही गहरे हैं।
तट पर न जाने कितनी प्रतिभाओं के अति रम्य महल और चेहरे हैं,
सागर की उफनती फोज के लिए उन महलों में न कोई पहरे हैं।
ज़िन्दगी की इस आजमयिश में, न जाने हम आगे बढ़कर क्यूँ ठहरे हैं,
क्या भय है सागर की लहरों का जिनके लिए न कोई पहरे हैं।
सागर के तट से दूर क्षितिज तक अनगिनत थिरकती लहरें हैं,
लहरों के भीतर उस सागर के अरमान बड़े ही गहरे हैं।
great work dear... n m glad u're in d netwrk finally.
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