Wednesday, September 1, 2010

आज एक और दिन बीत गया


आज एक और दिन बीत गया
में अपनी इछाओं से फिर रीत गया 
लड़ते-लड़ते कठिनाइयों से में फिर सीख गया 
आज एक और दिन बीत गया 

रम्य लुभावने लगते हैं, दुनिया के ये झरोखे,
मेरा मन भांप लेता है की हैं ये बस मेले के एक धोके 
उनसे अनभिज्ञ रहकर में बनता हूँ अनजान 
इसी से आगे बढ़कर चाहता हूँ बने मेरी पहचान 

ज्ञान चक्षु अब मेरे खुल गए हैं
सभी भूलों के पाप शायद धुल गए हैं
मौसम फिर एक बार बदल गए हैं
तूफ़ान से इरादों के जहाज़ निकल गए हैं 

रह-रह कर करता हूँ इंतज़ार,
दिल बेचैन और मन बेकरार 
डरता हूँ मंज़िल न करदे इनकार
यही है एक अकेला अनकहा सा करार

वीशवास करना आत्मा पर अब आदत है मेरी
म्हणत और भरोसा ही अब इबादत है मेरी
बढ़ चला हूँ आगे पाने को वो शोहरत मेरी
अब यही अंत तक रहेगी फितरत मेरी.

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